धार्मिक अनुष्ठान हो या पूजा-पाठ, कोई मांगलिक कार्य हो या देवों की आराधना, सभी शुभ कार्यों में हाथ की कलाई पर लाल धागा यानि मौली बांधने की परंपरा है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर मौली यानि कलावा क्यों बांधते हैं? आखिर इसकी वजह क्या है? मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। मौली बांधने के 3 कारण हैं- पहला आध्यात्मिक, दूसरा चिकित्सीय और तीसरा मनोवैज्ञानिक। हालांकि आज मौली, कलावा और राखी के स्वरूप में फर्क है। आओ जानते हैं इसे बांधे जाने के 10 प्रमुख कारण…
- रक्षा के लिए– वेदों में लिखित है कि वृत्तसुर से युद्ध करने जाते समय इंद्राणी रची ने इंद्र की दाहिनी भुजा पर रक्षा कवच यानी कि मौली या कलावा का रक्षा सूत्र बांधा था। जिससे वृद्ध सूरत को मारकर इंद्र विजयी हुए थे। इसीलिए जब भी कोई युद्ध में जाता है तो उसके कलाई पर मौली, रक्षा सूत्र या कलावा बांधा जाता हैं।
- वचन देने के लिए– पुराणों में कहा गया है कि जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था। तब उन्होंने राजा बलि के हाथों में रक्षा सूत्र बांधा था। राजा बलि ने दान देने से पूर्व यज्ञ में रक्षा सूत्र बांधा था। भगवान वामन ने जब राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा तो राजा बलि ने उन्हें तीन पग भूमि का दान दे दिया। तब खुश होकर भगवान वामन ने खुश होकर बलि के हाथ में रक्षा सूत्र बांधा और वचन दिया कि वह सदा उनकी रक्षा करेंगे और हमेशा उनके साथ रहेंगे।
- मन्नत मांगने के लिए –आपने देवी देवताओं के स्थान पर देखा होगा कि लोग वहां मौली बांधते हुए मन्नत मांगते हैं। और जब उनकी मन्नत पूरी हो जाती है तो वह इसे खोल देते हैं।
- शुभ कार्य की शुरुआत- जब हम कोई नई वस्तु खरीदते हैं या शुभ कार्य करते हैं तो सबसे पहले उसकी शुरुआत मौली बांधकर करते हैं।
- प्रत्येक धार्मिक क्रिया कर्म में- हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानी पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन, संस्कार, मांगलिक कार्य, आदि के पूर्व पुरोहितों द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है।
- रक्षाकवच है मौली- हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य और जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु और ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो ये तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों और त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है, जिससे रक्षा सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती हैं। इस रक्षा-सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता।
- त्रिदेव के आशीर्वाद के लिए- मौली बांधने से त्रिदेव ब्रह्मा, महेश और विष्णु का आशीर्वाद मिला है और साथ ही तीनों शक्तियों पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी की भी कृपा होती है।
- नजर से बचने के लिए– कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान लोग कहते हैं कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है और कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती है। यह काला धागा भी होता है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।
- सेहत के लिए मौली– प्राचीनकाल से ही कलाई, पैर, कमर और गले में भी मौली बांधे जाने की परंपरा के चिकित्सीय लाभ भी हैं। डॉक्टर्स के अनुसार हमारी शरीर के कई अहम अंगों तक पहुंचने वाली नसे कलाई से हो कर गुजरती है। इसलिए जब हम अपनी कलाई पर मौली बांधते है तो उन नसों पर दबाव पड़ने के कारण उनकी क्रिया नियंत्रित रहती है। जिससे की वात, पित्त व कफ की समस्या दूर हो जाती है। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है।
Written by: ANJU YADAV YUVA BHARAT SAMACHAR

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