आज हर कोई अपनी सेहत के लिए कुछ करें या ना करें लेकिन हां, चाहत जरूर कर सकता है कि उसका पेट अपनी लाइन को क्रॉस न करें। और उनके सिक्स पैक बेशक बढ़कर आठ हो जाए लेकिन छ: से पांच कतई ना हो। हालात यहां तक पहुंच गए है कि कोरोना के चलते लॉकीडाउन… भले धीरे-धीरे छट रहा हो लेकिन जिमखानों पर तो अभी तक ताले लटके हुए हैं।
वैसे आपको एक बात बतानी थी कि अभी आपने पिछली लाइन में लॉकडाउन को लॉकीडाउन पढ़ा होगा.. हैं ना.. सही कहा ना, मुझे पक्का यकीन है कि आपने कहा होगा कि लॉकडाउन भी लिखना नहीं आता… आर्टिकल क्या खाक लिखते होंगे। और तो और हो सकता है कि आपने उसे गलत पढ़कर फिर से सही पढ़ा होगा… या वाइसवर्सा। वैसे होने को तो ये भी हो सकता है कि मेरे बताने के बाद आपने फिर से पिछली लाइन में जाकर गलती को रिचेक किया हो। कि क्या सचमुच ऐसा था।
घबराईये मत वो लॉकडाउन ही है बल्कि जानते बूझते ही लॉकीडाउन लिखा गया है। शब्दों पर मत जाइए, भावनाओं को समझिए जनाब… क्या ऐसा सिर्फ फिल्मों में कहा जा सकता है क्या… या सिर्फ दोस्तों से अपनी कोई गलती कवर करने के लिए… वो क्या कहते है उसे स्लिप ऑफ टंग।
अब लॉकीडाउन इसीलिए क्योंकि… बाहर की कोई चीज़ वैसे भी काफी मशक्ततों के बाद ही मिल पा रही है। और अगर मिल भी रही है तो कोरोना बाबा ने बाहर का खाना खाने के लिए मना जो किया हुआ है। समझ नहीं आता ऐसा बोलने के लिए मम्मियों की डेडिकेशन में कोई कमी आ रही थी कि अब ये कोरोना भी। तो घर में पड़े-पड़े लोकी ही खाने को मिलेगी ना… ऊप्पपस्…शायद मैंने कई लोगों की दुखती नस पर हाथ रख दिया। ये होता है गलती से मिशशशश…टेक…वाला सीन।
इसका फल… अरे केला, सेब वाला फल नहीं … रिजल्ट या परिणाम वाला फल … क्या समझे… खैर इसका रिजल्ट ये है कि करीब करीब हर दूसरा आदमी आलस के जाल में बुरी तरह से फंस चुका है। बिल्कुल मेरी तरह… जिसे बेड टी भी चाहिए और तो और बॉडी भी मेंटेंड ही चाहिए। लेकिन अब मात्र सोचने भर से तो मार्केट में कोई ऐसा शोध नहीं आ सकता ना कि… सोईये और पाइये मनचाही बॉडी शेप। हाल तो ऐसा कुछ शोध करने के बाद भी नहीं आने वाला। तो भ्रम की दुनिया को थोड़ा समझिये जनाब। और हर पल को खुश होकर जीते जाइऐ। क्या पता अगले पल क्या हो जाएं।
अतिथि तुम कब जाओगे मूवी और कोरोना से एक बात तो बिल्कुल साफ हो गई है कि मेहमान सिर्फ एक या दो दिन तक ही अच्छा लगता है। और इससे इज्जत भी बरकरार रहती है। लेकिन कोरोना का खौफ कहलूं या सो कॉल्ड इज्जत तो जैसे निश्तेनाबूत हो गया है। और इंडिया के स्वेग के बारे में तो पुछिए ही मत जनाब… यहां कोरोना इज लाइक… देखा जायेगा केस।
रूकिए-रूकिए क्या आपको याद है कि इस आर्टिकल की हेडलाइन क्या थी। अगर याद है तो बधाई हो आपके बादाम ने अपना कर्ज़ अदा कर दिया। बोले तो हिसाब बराबर… अगर नहीं… तो आपको पहले ही बता दूं कि हमेशा सिरियस होकर आर्टिकल में काम की चीजें ढूंढना इज नॉट फेयर… यूं नॉटी। हंसते रहिए एंड बी चिल-पिल।
Written by: Vanshika Saini YUVA BHARAT SAMACHAR

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